बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
सन् 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की नियुक्ति की गई थी।
सन् 1948 में ही केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद ने अपनी 14वीं बैठक में सिफारिश की थी।
माध्यमिक शिक्षा की जाँच करने और उसके पुनर्गठन एवं सुधार हेतु आय सुझाने के लिए एक आयोग गठित किया गया।
भारत सरकार ने 23 सितम्बर, 1952 को डॉ. ए. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग का गठन किया गया।
माध्यमिक शिक्षा आयोग को मुदालियर आयोग भी कहा जाता है।
आयोग के सदस्यों में सृजित यह सचिव अध्यक्ष व अन्य सदस्य भी है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने अध्यक्ष के पद पर मद्रास के कुलपति है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग में सचिव के पद पर श्री एन. बसु प्रिसिपल ऑफ सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन दिल्ली है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग में यह सचिव के पद पर एजुकेशन ऑफीसर शिक्षा मन्त्रालय भारत सरकार है।
इस आयोग के गठित होने का उद्देश्य माध्यमिक शिक्षा के समस्त पहलुओं की जाँच जैसे माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य, संगठन एवं पाठ्यवस्तु, प्राथमिक, बेसिक और उच्च शिक्षा से इसका सम्बन्ध, विविध प्रकार के माध्यमिक विद्यालयों का परस्पर सम्बन्ध व अन्य समस्याएँ।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के उद्देश्य में लोकतान्त्रिक नागरिकता के विकास पर बल दिया गया। व्यावसायिक कुशलता की उन्नति होनी चाहिए।
बालक में रचनात्मक स्रोतों का विकास करना चाहिए।
ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो जिससे छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास हो।
माध्यमिक शिक्षा का मुख्य कार्य व्यक्तियों को प्रशिक्षित करना होना चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा स्वयं में पूर्ण इकाई है और यह बालक को जीवन के उत्तरदायित्वों को ग्रहण करने के लिए आवश्यक है।
इण्टरमीडिएट स्तर को उच्चतर माध्यमिक शिक्षा द्वारा बल दिया गया है।
इस स्तर पर 7 वर्ष की शिक्षा आवश्यक है।
विश्वविद्यालयों में प्रथम स्नातक पाठ्यक्रम तीन वर्ष की अवधि का होना चाहिए।
विविध उद्देश्य अभिवृत्तियों और योग्यताओं के अनुसार छात्रों को विविध पाठ्यक्रम प्रदान किये गये।
जो माध्यमिक शिक्षा के स्तर का पाठ्यक्रम पूर्ण कर ले उन्हें पॉलीटेक्निक अथवा प्रौद्योगिकी संस्थाओं में विशेषीकृत उच्चतर पाठ्यक्रम लेने के लिए अवसर दिये जाने चाहिए।
अधिक संख्या में तकनीकी स्कूल खोले।
इस नवीन संगठन के अन्तर्गत बड़े शहरों में नवीन तकनीकी संस्थान स्थापित किये जाने चाहिए। जो विभिन्न स्थानीय विद्यालयों की आवश्यकताओं को पूरा करे।
छात्रों को व्यवहारिक प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराना उद्योगों के लिए अनिवार्य करने हेतु आवश्यक कानून बनाये जाना चाहिए।
माध्यमिक स्तर पर तकनीकी पाठ्यक्रमों के उपयुक्त स्वरूप को विकसित करने के सम्बन्ध में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और अन्य संस्थाओं का विस्तृत पाठ्यक्रम तैयार किया जाए।
शिक्षा का स्वरूप राष्ट्रीय शिक्षा के सामान्य स्वरूप को युक्तिसंगत अनुरूप स्तर तक लगाया जाना चाहिए।
शिक्षा पर अल्प कर लगाया जाना चाहिए और इसका तकनीकी शिक्षा की उन्नति हेतु उपयोग किया जाए।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और इसके अधीन कार्य करने वाली संस्थाओं का विस्तृत पाठ्यक्रम तैयार करने में उपयोग किया जाना चाहिए।
केन्द्र व राज्य सरकारों को मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक आवासीय विद्यालय स्थापित किये जाने चाहिए।
शिक्षक छात्र सम्पर्क हेतु अधिक अवसर प्रदान करने और मनोरंजनात्मक एवं अतिरिक्त पाठ्य सहगामी क्रियाओं के विकास के उपयुक्त केन्द्रों पर आवासीय विद्यालय स्थापित करें।
विकलांग बच्चों के लिए अधिक संख्या में विद्यालय खोले जाए।
सह शिक्षा का प्रबन्ध किया जाए।
सभी बालक एवं बालिकाओं के लिए सह शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाए।
गृह विज्ञान के अध्ययन के लिए विशेष सुविधा दी जाए।
माध्यमिक विद्यालय स्तर पर शिक्षण का माध्यम मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा होना चाहिए।
मिडिल स्कूल स्तर के अन्तर्गत प्रत्येक बालक को कम से कम दो भाषायें पढ़ायी जानी चाहिए।
अंग्रेजी और हिन्दी जूनियर बेसिक स्तर के अन्त में प्रारम्भ की जानी चाहिए।
उच्च एवं उच्चतर स्तर पर कम से कम दो भाषाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए जिसमें एक मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।
उच्च एवं उच्चतर स्तर पर विभिन्नीकृत प्रदान किया जाना चाहिए कोर विषय सभी छात्रों के लिए समान होने चाहिए।
मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा एवं शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम।
भाषा - हिन्दी (जिनकी मातृभाषा हिन्दी न हो )।
1. एक आधुनिक भारतीय भाषा - हिन्दी के अतिरिक्त
2. एक आधुनिक विदेशी भाषा - अंग्रेजी के अतिरिक्त।
सामाजिक अध्ययन - सामान्य पाठ्यक्रम (केवल प्रथम दो वर्ष)
1. सामान्य विज्ञान - गणित सहित पाठ्यवस्तु।
एक शिल्प (कताई बुनाई, लकड़ी का काम, धातु कार्य)।
2. मानव ज्ञान - एक शास्त्रीय भाषा, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र एवं नागरिकशास्त्र के तत्व गणित, संगीत, गृहविज्ञान |
3. तकनीकी - व्यवहारिक गणित एवं ज्यामितीय ड्राइंग, व्यवहारिक विज्ञान |
4. वाणिज्य - व्यापारिक अभ्यास, बुक कीपिंग, वाणिज्य, भूगोल अथवा अर्थशास्त्र एवं नागरिकशास्त्र।
5. कृषि - सामान्य कृषि, पशुपालन, उद्यान तथा बागवानी कृषि रसायन एवं वनस्पति विज्ञान।
6. ललित कलाएँ - गृह अर्थशास्त्र, पोषण एवं पाक विद्या, मातृकला एवं शिशु रक्षा!
पाठ्य-पुस्तकें - एक उच्च अधिकार प्राप्त पाठ्य-पुस्तक समिति गठित की जानी चाहिए।
पाठ्य-पुस्तक समिति में राज्य की न्यायपालिका का उच्च अधिकारी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश, सम्बन्धित क्षेत्र के लोक सेवा आयोग का एक सदस्य, क्षेत्र का एक उपकुलपति, राज्य का एक प्रधानाध्यापक अथवा प्रधानाध्यापिका, दो प्रख्यात शिक्षा विद् तथा शिक्षा निदेशक सम्मिलित हो।
पाठ्य-पुस्तक समिति को पुस्तक के प्रारूप (Format) मुद्रण, उद्धरण और कागज के प्रकार के लिए स्पष्ट मानदण्ड निर्धारित करना चाहिए।
शिक्षण की विधियों का उद्देश्य छात्रों में कार्य की आदत, उचित अभिवृत्ति और अभीष्ट मूल्यों में वृद्धि करना होना चाहिए।
छात्रों में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक रुचि विकसित करने के लिए प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय को इस प्रकार के पुस्तकालय कक्षा पुस्तकालय और विषय पुस्तकालय रखने चाहिए।
सभी विद्यालयों में प्रिफेक्ट्स, मानीटर्स और छात्र परिषदों सहित गृह प्रणाली के रूप में स्वशासन प्रारम्भ किया जाए।
सामूहिक खेलों और अन्य पाठ्य सहगामी क्रियाओं को विशेष महत्व दिया जाए।
एन.सी.सी. केन्द्रीय सरकार के अधीन हो।
शिक्षकों को प्राथमिक सहायता और स्वास्थ्य के समान्य सिद्धान्तों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
छात्रों की शारीरिक क्रियाओं के पूर्ण अभिलेख तैयार किये जाने चाहिए।
शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट अथवा हायर सेकेन्डरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट प्राप्त कर चुके है। उनके लिए प्रशिक्षण की अवधि दो वर्ष हो।
स्नातक शिक्षक प्रशिक्षणं संस्थाएँ विश्वविद्यालयों द्वारा सम्बद्ध तथा मान्यता होनी चाहिए।
आयोग ने देश की वर्तमान आवश्यकताओं एवं जन आकाक्षाओं के अनुरूप माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण किया है।
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- अध्याय - 17 प्रारम्भिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें
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